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तीर्थंकर नाम कर्म की प्रकृति हमेशा जीवों के हित के लिए होती है : मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

  रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन मुनिश्री ...

 


रायपुर। श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने भगवान महावीर का जन्म वांचन किया। माता त्रिशला के 14 सपनों का उल्लेख किया। इसी के साथ ही सिद्धि शिखर मंडपम में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की भक्ति भावपूर्वक आराधना जारी है।

मुनिश्री ने कहा कि कल्पसूत्र हमारे जीवन के व्यवहार को दर्शाता है कि हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए। कल्पसूत्र एक ऐसा विशिष्ट ग्रंथ है इसको तीन भागों में बांटा गया है कि पहला विचार सूत्र,दूसरा वार्तालाप सूत्र और तीसरा व्यवहार सूत्र। मुनिश्री ने कहा कि शुभ प्रकृति पुण्य की है जो सारी की सारी उदय में किसी भी व्यक्ति के आ सकती है। पुण्य की शुभ प्रकृति उदय के अंदर में हो तो उदय में आई हुई शुभ प्रकृति का उपयोग जीव किस तरह से करता है यह डिपेंड करता है कि जीव किस स्थान पर है।

मुनिश्री ने कहा कि आज किसी को कंठ अच्छा मिला है तो किसी को अभिनय करने की शक्ति अच्छी मिली है लेकिन सदुयोग छोड़कर वह उसका उपयोग पाप बांधने में कर रहे हैं। आज ऐसे राग से भरे गीत सुनने के बाद में जीवन के अंदर राग की वृद्धि होती है। इस तरह से शुभ प्रकृति के अंदर जीव पाप कर्म भी बांध सकता है। परंतु जिन नाम कर्म, तीर्थंकर नाम कर्म एक ऐसी नाम कर्म की प्रकृति है जो हमेशा एकांत से हमेशा जीवों के हित के लिए ही होती है। जीवों का हित ही करती है। ऐसे शुभ प्रकृति के स्वामी तीर्थंकर परमात्मा होते हैं।

मुनिश्री ने भगवान के जन्म वांचन में आगे "अप्रकट परमात्मा का अप्रकट प्रभाव समझाया" उन्होंने बताया कि परमात्मा अभी प्रकट नहीं हुए हैं माता के गर्भ के अंदर है लेकिन इससे पहले देवलोक में होते हैं। परमात्मा का जीव जब देवलोक छोड़ता है तो भी मन के अंदर एक आनंद की अनुभूति होती है। परमात्मा का जीव माता के गर्भ में आता है तो उसके बाद परमात्मा का प्रभाव होता है कि माता के पेट में वृद्धि नहीं होती। ये तीर्थंकर के आने का प्रभाव है और सारे के सारे राज्य में समृद्धि बढ़ जाती है।

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