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चंपई सोरेन के सुर हुए बागी तो हेमंत के निशाने पर बीजेपी, झारखंड की पॉलिटिक्स में मुद्दा 'अपमान'

  रांची: झारखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के सीनियर लीडर चंपई सोरेन के पार्टी छोड़ने की चर्चा...

 


रांची: झारखंड की राजनीति में एक बार फिर हलचल दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और JMM के सीनियर लीडर चंपई सोरेन के पार्टी छोड़ने की चर्चा है। उन्होंने यह तो नहीं कहा कि वह किस पार्टी में शामिल होंगे, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अब JMM में नहीं रहने वाले। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आधिकारिक घोषणा का इंतजार किए बगैर ही इसका ठीकरा BJP के सिर फोड़ दिया है। उनका आरोप है कि यह काम BJP का है।


अपमान का मुद्दा


चंपई सोरेन इसी साल फरवरी में तब मुख्यमंत्री बनाए गए थे, जब हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी तय होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। करीब पांच महीने बाद जब हेमंत सोरेन जमानत पर बाहर आए तो चंपई सोरेन को उनके लिए मुख्यमंत्री पद खाली करना पड़ा। वह मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के तरीके को अपने लिए अपमानजनक बता रहे हैं।

विधानसभा में बहुमत


जहां तक सरकार का सवाल है तो फिलहाल हेमंत सोरेन मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। 73 सदस्यों वाली (आठ सीट खाली हैं) मौजूदा विधानसभा में हेमंत सोरेन सरकार को 44 विधायकों का समर्थन हासिल है। शायद यही वजह है कि कुछ विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने की चर्चा के बीच चंपई सोरेन ने यह साफ कर दिया कि यह उनका निजी संघर्ष है और अभी वह पार्टी से और लोगों को अपने साथ ले जाने की नहीं सोच रहे।

चुनावी समीकरण

जाहिर है, सरकार गिरने-गिराने से ज्यादा यह चुनावी समीकरणों को ठीक करने का प्रयास है। झारखंड में आदिवासी वोट बैंक बहुत मायने रखता है। BJP के लिए वहां अपनी पैठ बनाना इसलिए भी जरूरी है कि पिछले चुनावों में उसका उन क्षेत्रों में प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। 2019 विधानसभा चुनाव में राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से 26 पर वह हार गई थी। हालिया लोकसभा चुनाव में भी आदिवासियों के लिए सुरक्षित पांच सीटों पर उसकी पराजय हुई। ऐसे में BJP चंपई सोरेन के बहाने यह मसला उठाना चाहेगी कि राज्य में आदिवासी नेताओं का भी सम्मान सुरक्षित नहीं है।

आदिवासी मुख्यमंत्री

मगर जेएमएम और विपक्षी गठबंधन के लिए यह कोई अप्रत्याशित स्थिति नहीं लगती। उनके लिए यह ज्यादा बड़ा मसला है कि राज्य के लोगों द्वारा निर्वाचित सरकार के मुखिया, एक आदिवासी मुख्यमंत्री को जेल भेज दिया गया। उन्हें लगता है कि इस मुद्दे पर उन्हें लोगों की सहानुभूति भी मिलेगी। पार्टी और घरों में फूट डालने के ताजा आरोप के पीछे भी इरादा यही है कि चंपई सोरेन के अपमान के आरोपों का ताप कम करने के लिए उसे बीजेपी की साजिश का रूप दे दिया जाए। वोटरों को कौन कितना यकीन दिला पाता है यह तो चुनाव नतीजों से पता चलेगा, लेकिन इस उठापटक के बीच मुकाबला दिलचस्प जरूर हो गया है।

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