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धर्मस्थलों पर जाने से कुछ नहीं होगा, आपके अंदर धर्म को जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए : विरागमुनिजी

रायपुर। राजधानी की पावन धरा पर जिनवाणी की वर्षा के क्रम में रविवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी के श्रीमुख से देवेंद्र नगर स्थित शीतलनाथ...


रायपुर। राजधानी की पावन धरा पर जिनवाणी की वर्षा के क्रम में रविवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी के श्रीमुख से देवेंद्र नगर स्थित शीतलनाथ जिनालय में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन का लाभ लिया। प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि चंडकौशिक नाग, जो इतना जहरीला था कि उसके देखने मात्र से प्राणियों की जान चली जाती थी। जिनवाणी का श्रवण करने से चंडकौशिक नाग ने भी मोक्ष को प्राप्त कर लिया। आज लोगों के लिए धर्म का श्रवण करना बहुत ही मुश्किल काम हो गया है।

लोगों की मदद करना आपके लिए धर्म जरूर है लेकिन यह भी आपको धर्म के बारे में सुनने के बाद ही पता चलता है। आत्मसमृद्धि का एक उदाहरण बताते हुए गुरु भगवंत ने कहा कि एक आदमी अमेरिका से उनके गृह ग्राम में पधारे संत के पास पहुंचता है। वह व्यक्ति उनसे मिलना चाहता है पर समय नहीं होने के कारण मुलाकात नहीं हो पाती और जब मुलाकात होती है तो उसे दो दिन बाद 11 बजे का समय दिया जाता है। वह व्यक्ति दो दिन बाद निर्धारित समय पर संत के पास पहुंच जाता है।

संत के पास पहुंचने पर संत की सहायक आते हैं और बताते हैं कि इनकी आज अमेरिका में 50 करोड़ डॉलर की डील होनी थी पर ये आपके पास आए हैं। संत ने कहा अगर ऐसी बात थी तो मुझे उसी दिन बता दिया होता तो मैं समय निकाल कर आपकी बातों को सुन लेता। वह व्यक्ति कहता है कि यह 50 करोड़ डॉलर की डील फाइनल होने पर मुझे भौतिक समृद्धि तो मिल जाती लेकिन यह समय आत्मा समृद्धि का है, जिससे मेरे जीवन का कल्याण होना है। ऐसी डील तो भविष्य में मुझे फिर मिल जाएगी लेकिन आत्म समृद्धि नहीं मिल पाएगी। अब आप विचार कीजिए कि जो करोड़ों रूपयों की डील छोड़कर आत्म समृद्धि के लिए आ रहे हैं तो आजकल कई लोग ऐसे भी हैं जो केवल फॉर्मेलिटी निभाने के लिए प्रवचन में आते हैं, मंदिर जाते हैं।

पूजा पाठ करने के लिए भी पुजारी को कहते हैं। फल-फूल, चढ़ावा, पूजन-अनुष्ठान का सामान अनुष्ठान का सामान भी वे अपने सहायकों से उठवाते हैं लेकिन अपने हाथों से वह यह सब नहीं करते तो धर्म का लाभ उन्हें कैसे मिलेगा। धर्मस्थल में आकर केवल प्रवचन सुनने से कुछ नहीं होगा, आपके अंदर जिज्ञासा होनी चाहिए धर्म को जानने की, उसके बारे में सीखने की। आपके मन में प्रश्न आना चाहिए तब यह समझ में आएगा कि आप मन से प्रवचन सुन रहे हो।  मुनिजी ने कहा कि केवल अपनी जिज्ञासाओं को संतुष्ट करके हमें घर नहीं जाना है बल्कि हमें परिणाम में परिवर्तन लाना है। जब आपको धर्म समझ में आ जाएगा तो पाप भी काम होगा।

आज के युग में दानदाताओं और धर्म करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है लेकिन ताज्जुब की बात है कि उसके बाद भी पाप नहीं घट रहा है। हम इनफॉरमेशन तो ले रहे हैं लेकिन हमारे अंदर नॉलेज नहीं आ रहा है। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं, वैसे ही हमारे पाप भी बढ़ते जा रहे हैं जबकि बचपन में ऐसा नहीं था। हमें हमारे मन को धर्म के क्षेत्र में एक बच्चे के जैसा बनना होगा तब हम धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे।

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